अभियोक्ता के बयान को वेदवाक्य नहीं माना जा सकता: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट
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- October 8, 2022
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हरियाणा और पंजाब हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में निचली अदालत के आदेश को बरक़रार रखते पीड़िता द्वारा दायर अपील को ख़ारिज कर दिया।
जस्टिस सुरजीत सिंह संधावालिया और जस्टिस जगमोहन बंसल की पीठ ने रेवाड़ी के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा 1 मई 2019 को दिए गए निर्णय को बरक़रार रखा जिसमे प्रतिवादी को बरी कर दिया गया था। अपीलकर्ता (पीड़िता) ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
पूरा मामला उस घटना से जुड़ा है जिसमे अपीलकर्ता (पीड़िता) ने अपने पूर्व मंगेतर पर अश्लील व्यवहार और जान से मारने की धमकी का आरोप लगाया था।
केस के तथ्य
अपीलकर्ता (पीड़िता) के अनुसार 9 अगस्त 2017 को प्रतिवादी (आरोपी) ने उसे फोन कर कोसली (हरयाणा) बुलाया था। अपने परिवार की अनुमति के बाद पीड़िता (अपीलकर्ता) उस से कोसली बस स्टैंड पर मिली। प्रतिवादी (आरोपी) पीड़िता (अपीलकर्ता) को फिर एक होटल में ले गया जहाँ वह उसके साथ आधा घंटे तक रही। प्रतिवादी (आरोपी) ने होटल में एक रूम लेने का प्रयास किया लेकिन स्टाफ ने रूम देने से माना कर दिया फिर वह पीड़िता को अपनी बाइक से कोसली में एक स्कूल के पास ले गया जहां उसने उसके साथ अश्लील व्यवहार किया। पीड़िता (अपीलकर्ता) ने शादी पूर्व शारीरिक संबंध बनाने से इंकार कर दिया इस पर प्रतिवादी (आरोपी) भड़क गया और उसने शादी न करने और जान से मारने की धमकी दे कर वहां से चला गया। अपीलकर्ता (पीड़िता) अपने घर वापस चली गयी। फिर प्रतिवादी (आरोपी) ने उसे 12 अगस्त और 14 अगस्त 2017 को फोन कर जान से मारने की धमकी दी। वह डर गयी और उसने पूरी घटना से अपने पिता को अवगत कराया जिसने आरोपी के परिवार से बात करने का प्रयास किया लेकिन उस के परिवार ने उसके पिता का फोन नहीं उठाया।
18 सितम्बर 2017 को पीड़िता ने झज्जर महिला थाना में आवेदन दिया जिसे कोसली थाना को स्थान्तरित कर दिया गया था। अपीलकर्ता की शिकायत के आधार पर 19 सितम्बर 2017 को एक FIR संख्या 191,आई पी सी की धारा 376, 354, 354 B, 506, और 509 के तहत कोसली पुलिस स्टेशन में दर्ज की गयी थी।
8 नवंबर 2017 को पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जो उस समय भारतीय सेना की सेवा में था। पुलिस ने विवेचना के बाद सी आर पी सी की धारा 173 के अंतर्गत अपनी रिपोर्ट दाखिल की थी। प्रतिवादी (आरोपी) का बयान सी आर पी सी की धारा 313 के अंतर्गत दर्ज किया गया था।
ट्रायल कोर्ट ने विभिन्न पहलुओं पर विचार किया तपश्चात इस निष्कर्ष पर पंहुचा कि अभियोजन पक्ष अपराध के कृत्य को आरोपी से जोड़ने में नाकाम रहा और दोष साबित करने वाले अनिवार्य तत्व आरोपी के खिलाफ साबित नहीं हुए। प्रत्यापक और ठोस साक्ष्यों के अभाव में ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को से सभी आरोपों से बरी कर दिया था। ।
हाई कोर्ट ने माना कि हालांकि यह कानून का तय प्रस्ताव है कि अभियोक्ता के बयान को पूर्व प्रभावी विचार दिया जाना चाहिए लेकिन सभ्य समाज में किसी व्यक्ति को सिर्फ अभियोक्ता के बयान के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अभियोक्ता के बयान को वेदवाक्य नहीं माना जा सकता और कोर्ट को यह देखना होगा कि वह वास्तविक गुणवत्ता की साक्षी है। यदि अभियोक्ता के बयान को वैदवाक्य मान लिया जाये और कोर्ट किसी को सिर्फ अभियोक्ता के बयान के आधार पर दोषी ठहरा दे तो यह न्याय का उपहास होगा। ऐसी स्थिति में ट्रायल की भी आवश्यकता नहीं है सिर्फ सी आर पी सी की धारा 164 और 161 के तहत मजिस्ट्रेट और पुलिस द्वारा दर्ज किये गए बयान किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने और जेल भेजने के लिए प्रयाप्त होंगे।
हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए अपीलकर्ता की अपील को खारिज कर दिया।
Case: X v State of Haryana and another
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